डाक्टर का परचा जब भी मेरे सामने आता है,
मरज मेरा खुद बखुद ही कहीं भाग जाता है।
एक झींक आने का भी कैसा इलाज होता है,
रुपया सब निकल जाता पैसा बचा होता है।
पहले तो उनकी लिखावट पल्ले नहीं पड़ती,
पर्चे में कहीं खाली जगह नहीं दिख पड़ती।
लिखावट क्या कोई कूट भाषा दिखती है,
किसी के लिये सुपारी जैसे दी गयीलगती है।
मरीज के लिए समझना बड़ा मुश्किल होता है,
इस काम करने के लिये दुभाषिया होता है।
भगवान न करे किसी को अस्पताल जाना पड़े,
पैसा तो लुटे ही सुख चैन भी गवाना पड़े।
मरीज पहुँचा नहीं स्लीपर सेल एक्टिव हो जाता है,
चलते फिरते को स्ट्रेचर पे लिटा दिया जाता है।
अंदर आ गये हैं तो पहले जमा करा दीजिये,
डाक्टर से मिलना है घंटा इंतजार कीजिए।
साहब अभी तो विजिट पर निकले हैं,
कितने भर्ती हैं मरीज वो भी गिनने हैं।
कहीं कोई चोरी से तो अंदर नहीं आ गया,
किसी वर्कर ने तो कोई पेशेंट घुसा लिया।
चलिये किसी तरह से विजिट तो पूरी हो गयी,
मरीज की मगर अब तलक़ ऐसी की तैसी हो गयी।
अब वो कर भी क्या सकता है,
पैसे जमा कर जा कहां सकता है।
साहब आ कर चैंबर मे आराम फरमाते हैं,
जानने वाले उनके पहले घुस जाते है।
कोई नेता है कोई नेता जी का पी. ए. है,
किसी के हाथ मिठाई कोई गिफ्ट लिए है।
तब कहीं जाकर आपका नंबर आता है,
तीन के जोड़ों में अंदर बुलाया जाता है।
अंदर बुलाना महज फारमेल्टी होती है,
मरीज की नब्ज़ टटोलना जरूरी होती है।
कौन सा ऐसा टेढ़ा मरज बताया जा सकता है,
कितनी जगह मरीज को फंसाया जा सकता है।
पैरों मे दरद है एक ऐक्सरे करवा के आइए,
समझ नहीं आ रहा m r i निकलवाइये।
अगल बगल वहीं सब दलाल खड़े रहते हैं,
कमीशन देते हैं डाक्टरों से मिले होते हैं।
कोई भी अस्पताल कर्मचारी कभी काम नहीं छोड़ता,
करने पडे कुछ भी काम कभी मुख नहीं मोड़ता।
उसे पता है इससे बेहतर वो और कहां पाएगा,
सब ब्याही गायें हैं जितना चाहे दुह ले जाएगा।
मरीज जांच करवा के आ जाता है,
बस घुटना खराब बता दिया जाता है।
लेकिन मरीज की औकात कहा होती है,
गरीब के संग बारात कहां होती है।
अब डाक्टर पूरा व्यापारी तरह बात करता है,
बरगलाता है मक्कारी का काम करता है।
कितनी औकात है तेरी साफ-साफ बता दे,
मंहगा लगता है ये वाला तू सस्ता वाला लगा ले।
अंतर बस इतना है तू भी समझ सकता है,
पहला अमेरिकन दूजा मेड इन चाइना है।
चलने को चाइनीज चीजें भी चलती हैं,
पर चाइनीज की गारंटी नहीं मिलती है।
पर तू चिंता न कर मैं वादा करता हूँ,
तुझे सस्ता वाला
घुटना लगा देता हूँ।
बस फिर क्या मरीज हामी भर देता है,
लुटने की अपनी तारीख ले लेता है।
फिर तो वही जैसा हर दुकान में होता है,
किसी शो रूम का मालिक करता है।
जब तक आपने सामान खरीद न लिया हो,
या उसका आपने पेमेंट न कर दिया हो।
जैसे ही आपने सामान की डिलीवरी ले ली,
पेमेंट सामान की पूरी पूरी खत्म कर दी।
बस आपका और उसका संबंध टूट जाता है,
आपको छोड़कर वो डीलिंग मे लग जाता है।
बस ऐसा ही रिश्ता मरीज चिकित्सक का हो गया है,
उसकी नजर में मरीज एक कस्टमर हो गया है।
मरज मेरा खुद बखुद ही कहीं भाग जाता है।
एक झींक आने का भी कैसा इलाज होता है,
रुपया सब निकल जाता पैसा बचा होता है।
पहले तो उनकी लिखावट पल्ले नहीं पड़ती,
पर्चे में कहीं खाली जगह नहीं दिख पड़ती।
लिखावट क्या कोई कूट भाषा दिखती है,
किसी के लिये सुपारी जैसे दी गयीलगती है।
मरीज के लिए समझना बड़ा मुश्किल होता है,
इस काम करने के लिये दुभाषिया होता है।
भगवान न करे किसी को अस्पताल जाना पड़े,
पैसा तो लुटे ही सुख चैन भी गवाना पड़े।
मरीज पहुँचा नहीं स्लीपर सेल एक्टिव हो जाता है,
चलते फिरते को स्ट्रेचर पे लिटा दिया जाता है।
अंदर आ गये हैं तो पहले जमा करा दीजिये,
डाक्टर से मिलना है घंटा इंतजार कीजिए।
साहब अभी तो विजिट पर निकले हैं,
कितने भर्ती हैं मरीज वो भी गिनने हैं।
कहीं कोई चोरी से तो अंदर नहीं आ गया,
किसी वर्कर ने तो कोई पेशेंट घुसा लिया।
चलिये किसी तरह से विजिट तो पूरी हो गयी,
मरीज की मगर अब तलक़ ऐसी की तैसी हो गयी।
अब वो कर भी क्या सकता है,
पैसे जमा कर जा कहां सकता है।
साहब आ कर चैंबर मे आराम फरमाते हैं,
जानने वाले उनके पहले घुस जाते है।
कोई नेता है कोई नेता जी का पी. ए. है,
किसी के हाथ मिठाई कोई गिफ्ट लिए है।
तब कहीं जाकर आपका नंबर आता है,
तीन के जोड़ों में अंदर बुलाया जाता है।
अंदर बुलाना महज फारमेल्टी होती है,
मरीज की नब्ज़ टटोलना जरूरी होती है।
कौन सा ऐसा टेढ़ा मरज बताया जा सकता है,
कितनी जगह मरीज को फंसाया जा सकता है।
पैरों मे दरद है एक ऐक्सरे करवा के आइए,
समझ नहीं आ रहा m r i निकलवाइये।
अगल बगल वहीं सब दलाल खड़े रहते हैं,
कमीशन देते हैं डाक्टरों से मिले होते हैं।
कोई भी अस्पताल कर्मचारी कभी काम नहीं छोड़ता,
करने पडे कुछ भी काम कभी मुख नहीं मोड़ता।
उसे पता है इससे बेहतर वो और कहां पाएगा,
सब ब्याही गायें हैं जितना चाहे दुह ले जाएगा।
मरीज जांच करवा के आ जाता है,
बस घुटना खराब बता दिया जाता है।
लेकिन मरीज की औकात कहा होती है,
गरीब के संग बारात कहां होती है।
अब डाक्टर पूरा व्यापारी तरह बात करता है,
बरगलाता है मक्कारी का काम करता है।
कितनी औकात है तेरी साफ-साफ बता दे,
मंहगा लगता है ये वाला तू सस्ता वाला लगा ले।
अंतर बस इतना है तू भी समझ सकता है,
पहला अमेरिकन दूजा मेड इन चाइना है।
चलने को चाइनीज चीजें भी चलती हैं,
पर चाइनीज की गारंटी नहीं मिलती है।
पर तू चिंता न कर मैं वादा करता हूँ,
तुझे सस्ता वाला
घुटना लगा देता हूँ।
बस फिर क्या मरीज हामी भर देता है,
लुटने की अपनी तारीख ले लेता है।
फिर तो वही जैसा हर दुकान में होता है,
किसी शो रूम का मालिक करता है।
जब तक आपने सामान खरीद न लिया हो,
या उसका आपने पेमेंट न कर दिया हो।
जैसे ही आपने सामान की डिलीवरी ले ली,
पेमेंट सामान की पूरी पूरी खत्म कर दी।
बस आपका और उसका संबंध टूट जाता है,
आपको छोड़कर वो डीलिंग मे लग जाता है।
बस ऐसा ही रिश्ता मरीज चिकित्सक का हो गया है,
उसकी नजर में मरीज एक कस्टमर हो गया है।
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