हंसना जीवन में सबसे अच्छा व्यायाम है,
हंसने की खातिर ही तो सारे काम हैं।
दिनभर की सब थकन पल में मिट जाती है,
जब कभी कभार हमें खुलकर हंसी आती है।
हंसी आने का कारण कुछ भी हो सकता है।
फिर वो कोई घटना हो या दुर्घटना हो,
सच में घटी हो या देखा कोई सपना हो।
बात चली है तो एक स्वपन सुनाता हूँ,
प्रयास है अब कितनी सफलता पाता हूँ।
स्वपन आरंभ हो रहा है,
एक कारवां गुजर रहा है।
गाड़ियों के काफिले चले जा रहे हैं,
उसमें प्रधानमंत्री नज़र आ रहे हैं।
गाड़ी भरे चौक दौड़ती जा रही थी,
कुछ दूरी पर सोनिया, प्रियंका नजर आ रही।
अचानक गाड़ी रुकती लगती है,
मंत्री जी को सू-सू लग पड़ती है।
कहते हैं रोको गाड़ी मुझे शंका आई है,
अवसर न मिला अब सांसत आई है।
ऐसा कैसे कोई कर सकता है,
सबके बीच समाधान कर सकता है।
आखिर प्रधान देश का मुखिया होता है,
किसी नियम कानून से बंधा होता है।
पर व्यक्ति के अपने कोई अधिकार नहीं?
फिर वो तो प्रधान है कोई लाचार नहीं।
अन्ततोगत्वा उनकी बात पूरी हो गयी,
सोनिया, प्रियंका कहती ही रह गयीं।
मैं संसद का अब विशेष सत्र बुलाउंगी,
ये बात सबसे पहले प्रश्नकाल में उठाउंगी।
तब तक बाहर भोर हो चुकी थी,
बस मेरी नींद भी टूट चुकी थी।
अब भी जब ये स्वप्न याद करता हूँ,
हर बार उसी तरह हंसा करता हूँ।
किसी को सुनाओ तो उसे भी समझ आता है,
खुलकर हंस लेता है हलका हो जाता हैं।
पर आजकल जो हंसाने के प्रोग्राम आ रहे,
समझ नहीं आता हंसा रहे या रुला रहे।
बताइए हंसाना भी व्यापार बना दिया,
हंसाना दूर हां पागल जरूर बना दिया।
कोई एक आदमी स्त्री रूप धर लेता है,
मुंह अपना दोअर्थी भाषा से भर लेता है।
संवाद और इशारे दोनों ही भटकाते हैं,
हंसाने की खातिर औरों को चिढ़ाते हैं।
मै भी बचपन में एक प्रोग्राम देखा करता था,
अंग्रेज़ी में था समझ न पाया करता था।
शायद आप में से कुछ को सौभाग्य मिला हो,
यस मिनिस्टर नाम था कभी कहीं देखा हो।
उसकी खासियत मुझे अलग नजर आती थी,
पात्र तो दो थे पर आवाजें अधिक आती थीं।
आवाजें अभिनय तो नहीं करती थीं,
मात्र हंसने का ही काम किया करती थीं।
इससे अपनी भी दिक्कत आसान हो जाती थी,
कहां हंसना है ये बात पता लग जाती थी।
जब उसमें हंसने की बात हो तुम भी हंस लो,
फिर आगे के लिये अपना मुख बंद कर लो।
अब जाकर मेरे समझ मे आया उनकी तंगहाली,
अब वहां पुरानी हो चली मशीनें तो हमने मंगा ली।
ये मानसिक दिवालिया पन नहीं तो क्या है,
ये कोई हंसना-हंसना है या कोई सजा है।
महिफल में बैठ गये तो हंसना जरूरी है,
विज्ञापन का जमाना है यही मजबूरी है।
हंसना चाहते हैं जीवन में एक काम करिये,
बिताए क्षण अपने,बेवकूफियां याद करिए।
मन में सोचिए सोचके ठहाके लगाइये,
हिम्मत अगर हो तो औरों को सुनाइए।
बस हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे,
आप फिर दोबारा बच्चे बन जांएगे।
मैंने जिस स्वप्न का जिक्र किया है, वास्तव मे
देखा था। तब अटल जी प्रधानमंत्री हुआ
करते थे।
हंसने की खातिर ही तो सारे काम हैं।
दिनभर की सब थकन पल में मिट जाती है,
जब कभी कभार हमें खुलकर हंसी आती है।
हंसी आने का कारण कुछ भी हो सकता है।
फिर वो कोई घटना हो या दुर्घटना हो,
सच में घटी हो या देखा कोई सपना हो।
बात चली है तो एक स्वपन सुनाता हूँ,
प्रयास है अब कितनी सफलता पाता हूँ।
स्वपन आरंभ हो रहा है,
एक कारवां गुजर रहा है।
गाड़ियों के काफिले चले जा रहे हैं,
उसमें प्रधानमंत्री नज़र आ रहे हैं।
गाड़ी भरे चौक दौड़ती जा रही थी,
कुछ दूरी पर सोनिया, प्रियंका नजर आ रही।
अचानक गाड़ी रुकती लगती है,
मंत्री जी को सू-सू लग पड़ती है।
कहते हैं रोको गाड़ी मुझे शंका आई है,
अवसर न मिला अब सांसत आई है।
ऐसा कैसे कोई कर सकता है,
सबके बीच समाधान कर सकता है।
आखिर प्रधान देश का मुखिया होता है,
किसी नियम कानून से बंधा होता है।
पर व्यक्ति के अपने कोई अधिकार नहीं?
फिर वो तो प्रधान है कोई लाचार नहीं।
अन्ततोगत्वा उनकी बात पूरी हो गयी,
सोनिया, प्रियंका कहती ही रह गयीं।
मैं संसद का अब विशेष सत्र बुलाउंगी,
ये बात सबसे पहले प्रश्नकाल में उठाउंगी।
तब तक बाहर भोर हो चुकी थी,
बस मेरी नींद भी टूट चुकी थी।
अब भी जब ये स्वप्न याद करता हूँ,
हर बार उसी तरह हंसा करता हूँ।
किसी को सुनाओ तो उसे भी समझ आता है,
खुलकर हंस लेता है हलका हो जाता हैं।
पर आजकल जो हंसाने के प्रोग्राम आ रहे,
समझ नहीं आता हंसा रहे या रुला रहे।
बताइए हंसाना भी व्यापार बना दिया,
हंसाना दूर हां पागल जरूर बना दिया।
कोई एक आदमी स्त्री रूप धर लेता है,
मुंह अपना दोअर्थी भाषा से भर लेता है।
संवाद और इशारे दोनों ही भटकाते हैं,
हंसाने की खातिर औरों को चिढ़ाते हैं।
मै भी बचपन में एक प्रोग्राम देखा करता था,
अंग्रेज़ी में था समझ न पाया करता था।
शायद आप में से कुछ को सौभाग्य मिला हो,
यस मिनिस्टर नाम था कभी कहीं देखा हो।
उसकी खासियत मुझे अलग नजर आती थी,
पात्र तो दो थे पर आवाजें अधिक आती थीं।
आवाजें अभिनय तो नहीं करती थीं,
मात्र हंसने का ही काम किया करती थीं।
इससे अपनी भी दिक्कत आसान हो जाती थी,
कहां हंसना है ये बात पता लग जाती थी।
जब उसमें हंसने की बात हो तुम भी हंस लो,
फिर आगे के लिये अपना मुख बंद कर लो।
अब जाकर मेरे समझ मे आया उनकी तंगहाली,
अब वहां पुरानी हो चली मशीनें तो हमने मंगा ली।
ये मानसिक दिवालिया पन नहीं तो क्या है,
ये कोई हंसना-हंसना है या कोई सजा है।
महिफल में बैठ गये तो हंसना जरूरी है,
विज्ञापन का जमाना है यही मजबूरी है।
हंसना चाहते हैं जीवन में एक काम करिये,
बिताए क्षण अपने,बेवकूफियां याद करिए।
मन में सोचिए सोचके ठहाके लगाइये,
हिम्मत अगर हो तो औरों को सुनाइए।
बस हंसते-हंसते लोटपोट हो जाएंगे,
आप फिर दोबारा बच्चे बन जांएगे।
मैंने जिस स्वप्न का जिक्र किया है, वास्तव मे
देखा था। तब अटल जी प्रधानमंत्री हुआ
करते थे।
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