जब कभी भी मैं अपने को हारता महसूस करता हूँ,
मन ही मन बस एक मंत्र लगातार जपा करता हूँ।
कुछ अजीब सा है मैने ही खुद सीखा है जाना है,
हो किसी के लिए दिवानापन मेरा तो तराना है।
मैच पांइट शब्द है जो मुझे आकर्षित करता है,
जाने क्यों ये मेरे अंदर ऊर्जा का संचार करता है।
लान टेनिस का खेल भी और खेलों सा होता है,
लेकिन इस खेल का जलवा ही अलग दिखता है।
कभी एक खिलाड़ी खेल जीतता सा लगता है,
बस जैसे ही अंपायर अंत में मैच पाइंट कहता है।
हारता खिलाड़ी इतनी ऊर्जा से भर जाता है कि,
मैच का रुख ही उसकी ओर होने लगता है।
मैच पाइंट केवल शब्द नहीं पूरा फलसफा है,
अंतिम प्रयास में सब कुछ झोंकने का भाव छिपा है।
सुबह उठते ही एक बार मैच पाइंट बोलके देखिये,
किसी काम को अपना तन मन लगाकर करिए।
ये समझ रखिये कि बस ये मेरा अंतिम प्रयास होगा,
ये मैच पाइंट भी हार गया आज तो मेरा क्या होगा।
बस देखिएगा हर मुश्किल काम खेल सरीखा हो जाएगा,
आपका ह्रदय विम्बलडन चैम्पियन जैसा हो जाएगा।
इस खेल पर ध्यान लगाइए इसकी बात ही निराली है,
हारने का न यहाँ गम न जीतने पर कोई दिवाली है।
इतनी शालीनता इतनी खेल भावना किसी खेल मे नहीं,
फाइनल में पहुँचने वाले दोनों बराबर कोई भी कम नहीं।
एक खिलाड़ी जिसे मैं बहुत पसंद करता था बताता हूँ,
नंबर वन रहा रैंकिंग में विम्बलडन न जीत पाया जाने क्यूँ।
हारे हुए कई मैच लगभग वो जीतने के करीब ले आया,
अंत में लेकिन बोरिस बेकर से टाइटल छीन न पाया।
इवान लैंडल उस खिलाड़ी का नाम चेकोस्लोवाकिया देश था,
पतली दुबली कद काठी थी पर रैंकिंग में नंबर एक था।
कई बरस तक मैंने टेनिस का फाइनल मैच देखा,
हर बार इस खेल का व्यवहार और खिलाड़ी एक सा देखा।
पहले टेनिस कोर्ट का माहौल देखिये और दर्शक देखिये,
खचाखच भरे स्टेडियम की स्तब्धता, ताली बजाना सीखिए।
यहाँ किसी दर्शक के लिए कोई खिलाड़ी सगा नहीं होता,
सब खेल का आनंद लेते हैं कोई यहाँ सट्टा नहीं लगा होता।
दोनों खिलाड़ी अपनी जान लड़ा देते हैं,जीतने की कोशिश करते हैं,
मजाल कह दे कोई कभी ऐसी हरकत या विरोधी को कुछ कहते हैं।
कितना तनाव झेलते हैं, कितना दबाव झेलते हैं,
फिर भी संयत रहते हैं अपशब्द नहीं बोलते हैं।
जीतने के बाद कोई बाडी लैग्वेज में परिवर्तन नहीं होता,
चैम्पियन बन गया मगर अपने बारे में कुछ नहीं कहता।
हारने वाला भी सहर्ष अपनी हार स्वीकार कर लेता है,
जीतने वाले की तारीफ सबको ही धन्यवाद देता है।
मात्र दस मिनट मे ही सेरेमनी पूरी हो जाती है,
बस कहानी यहीं से मेरी अपनी शुरू हो जाती है।
जब मैंने टेनिस देखा किया दो और चीजों का शौकीन था,
राजनीति में थी रुचि और क्रिकेट भी दिल के करीब था।
भारत के रिलायंस कप हारते ही क्रिकेट से मन ऊब गया,
गिरती पड़ती सरकारों को देखते देखते दिल ही टूट गया।
आज इतने वरस बाद देखता हूँ टेनिस अभी भी वैसा है,
न खिलाड़ी बदले न नियम न बदली उनकी वेशभूषा है।
काश थोड़ा सा उनका चरित्र हम भी अपना पाते,
टेनिस खेल सा खिलाड़ी भावना हम दिखा पाते।
हमारा खेल और राजनीति दोनों एक हो गये हैं,
खेल राजनीति,और राजनीति खेल हो गयी है।
दोनों जगह अपने नियम कानून बना लिए गये हैं,
जीत हो चाहे जैसे बस यही मूल मंत्र बना लिए हैं।
खेल और राजनीति भी दो घ्रुवों में बटे जा रहे,
टीवी न्यूज चैनल ही हमारे गुरू होते जा रहे।
क्रिकेट शुरू हो गया उसके विशेषज्ञ बुला लिये,
इलेक्शन आ गये तो चुनाव सर्वेक्षण चलवा दिये।
समझ में नहीं आता ये चीजें हमें कहां ले जाएगी,
हमारी राजनीति और क्रिकेट भी क्या,
टेनिस के मैच पाइंट का दर्शन अपनाएगी।
मन ही मन बस एक मंत्र लगातार जपा करता हूँ।
कुछ अजीब सा है मैने ही खुद सीखा है जाना है,
हो किसी के लिए दिवानापन मेरा तो तराना है।
मैच पांइट शब्द है जो मुझे आकर्षित करता है,
जाने क्यों ये मेरे अंदर ऊर्जा का संचार करता है।
लान टेनिस का खेल भी और खेलों सा होता है,
लेकिन इस खेल का जलवा ही अलग दिखता है।
कभी एक खिलाड़ी खेल जीतता सा लगता है,
बस जैसे ही अंपायर अंत में मैच पाइंट कहता है।
हारता खिलाड़ी इतनी ऊर्जा से भर जाता है कि,
मैच का रुख ही उसकी ओर होने लगता है।
मैच पाइंट केवल शब्द नहीं पूरा फलसफा है,
अंतिम प्रयास में सब कुछ झोंकने का भाव छिपा है।
सुबह उठते ही एक बार मैच पाइंट बोलके देखिये,
किसी काम को अपना तन मन लगाकर करिए।
ये समझ रखिये कि बस ये मेरा अंतिम प्रयास होगा,
ये मैच पाइंट भी हार गया आज तो मेरा क्या होगा।
बस देखिएगा हर मुश्किल काम खेल सरीखा हो जाएगा,
आपका ह्रदय विम्बलडन चैम्पियन जैसा हो जाएगा।
इस खेल पर ध्यान लगाइए इसकी बात ही निराली है,
हारने का न यहाँ गम न जीतने पर कोई दिवाली है।
इतनी शालीनता इतनी खेल भावना किसी खेल मे नहीं,
फाइनल में पहुँचने वाले दोनों बराबर कोई भी कम नहीं।
एक खिलाड़ी जिसे मैं बहुत पसंद करता था बताता हूँ,
नंबर वन रहा रैंकिंग में विम्बलडन न जीत पाया जाने क्यूँ।
हारे हुए कई मैच लगभग वो जीतने के करीब ले आया,
अंत में लेकिन बोरिस बेकर से टाइटल छीन न पाया।
इवान लैंडल उस खिलाड़ी का नाम चेकोस्लोवाकिया देश था,
पतली दुबली कद काठी थी पर रैंकिंग में नंबर एक था।
कई बरस तक मैंने टेनिस का फाइनल मैच देखा,
हर बार इस खेल का व्यवहार और खिलाड़ी एक सा देखा।
पहले टेनिस कोर्ट का माहौल देखिये और दर्शक देखिये,
खचाखच भरे स्टेडियम की स्तब्धता, ताली बजाना सीखिए।
यहाँ किसी दर्शक के लिए कोई खिलाड़ी सगा नहीं होता,
सब खेल का आनंद लेते हैं कोई यहाँ सट्टा नहीं लगा होता।
दोनों खिलाड़ी अपनी जान लड़ा देते हैं,जीतने की कोशिश करते हैं,
मजाल कह दे कोई कभी ऐसी हरकत या विरोधी को कुछ कहते हैं।
कितना तनाव झेलते हैं, कितना दबाव झेलते हैं,
फिर भी संयत रहते हैं अपशब्द नहीं बोलते हैं।
जीतने के बाद कोई बाडी लैग्वेज में परिवर्तन नहीं होता,
चैम्पियन बन गया मगर अपने बारे में कुछ नहीं कहता।
हारने वाला भी सहर्ष अपनी हार स्वीकार कर लेता है,
जीतने वाले की तारीफ सबको ही धन्यवाद देता है।
मात्र दस मिनट मे ही सेरेमनी पूरी हो जाती है,
बस कहानी यहीं से मेरी अपनी शुरू हो जाती है।
जब मैंने टेनिस देखा किया दो और चीजों का शौकीन था,
राजनीति में थी रुचि और क्रिकेट भी दिल के करीब था।
भारत के रिलायंस कप हारते ही क्रिकेट से मन ऊब गया,
गिरती पड़ती सरकारों को देखते देखते दिल ही टूट गया।
आज इतने वरस बाद देखता हूँ टेनिस अभी भी वैसा है,
न खिलाड़ी बदले न नियम न बदली उनकी वेशभूषा है।
काश थोड़ा सा उनका चरित्र हम भी अपना पाते,
टेनिस खेल सा खिलाड़ी भावना हम दिखा पाते।
हमारा खेल और राजनीति दोनों एक हो गये हैं,
खेल राजनीति,और राजनीति खेल हो गयी है।
दोनों जगह अपने नियम कानून बना लिए गये हैं,
जीत हो चाहे जैसे बस यही मूल मंत्र बना लिए हैं।
खेल और राजनीति भी दो घ्रुवों में बटे जा रहे,
टीवी न्यूज चैनल ही हमारे गुरू होते जा रहे।
क्रिकेट शुरू हो गया उसके विशेषज्ञ बुला लिये,
इलेक्शन आ गये तो चुनाव सर्वेक्षण चलवा दिये।
समझ में नहीं आता ये चीजें हमें कहां ले जाएगी,
हमारी राजनीति और क्रिकेट भी क्या,
टेनिस के मैच पाइंट का दर्शन अपनाएगी।
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