अपने ही शहर में सब अजनबी से लगने लगे,
दुनियां में भटकते थे कभी कमरों में सिमटने लगे।
हर एक चेहरे पे खामोशी का पर्दा है,
मौत का खौफ इतना हम जिंदगी से डरने लगे।
क्या खता है गुनाह किया कोई,
किस हया से सब चेहरे छुपने लगे हैं।
नसवार डाल छींकने की कभी रवायत थी जहां,
हाल ये के अब नाम छींक से भी डरने लगे।
जाने किस मनहूस घड़ी साल का आगाज हुआ,
पता नहीं हम हंसने के रोने लगे हैं।
इंसान कैद हो गये पिजरों में अपने अपने,
परिंदे बेशक बेफिक्री से चहकने लगे।
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