दाढ़ी की भरमार है,दाढ़ी ही सरकार है।
हर एक दीवाना है,दाढी का ही जमाना है।
दाढ़ी के कितने रूप हैं, कुछ भिन्न,प्रतिरूप हैं।
जितनी सुंदर दाढ़ी है,उतना बड़ा खिलाड़ी है।
मोदी दाढी ,जोगी दाढ़ी, शाहीदाढ़ी, कोहली दाढी।
दाढ़ी जिसने सम्हाल ली,अपनी दुनिया ढाल ली।
दाढी बेमिसाल है, सब दाढी का ही कमाल है।
छोटी दाढ़ी गजब ढा रही, लम्बी वाली मात खा रही।
राम, रहीम हवा खा रहे, इक रामदेव बस मौज उड़ा रहे।
सल्लू के चेहरे पे दाढ़ी नहीं फबती,हिजड़ों के बर्तन पर धोती नहीँ टिकती।
उलझी दाढ़ी जिसने पाली, समझो अपनी सास बुला ली।
लादेन, मूसा, जवाहिर,बगदादी,दाढ़ी ने ईनकी बैंड बजा दी।
अब तू जो भी है, जैसा है, इक रस्म बना ले।
जुम्मे के जुम्मे बाल न सही दाढ़ी को कटा ले।
What a poem, I really enjoyed reading it. Awesome keep it up.👍
जवाब देंहटाएं