मैं ठहरा हुआ हूँ फिर भी सब चल रहा है,
ये पल पल मे कैसा मंजर बदल रहा है।
सब हाथों मे है मगर कुछ मिलता नहीं,
सब ठहरा सा है फिर भी कुछ रुकता नहीं।
कहीं जाता नहीं कहां-कहां घूम आता हूँ,
दौड़कर भी कहीं पहुंच नहीं पाता हूँ।
लड़ता हूँ जिससे वही मेरे पास नहीं होता,
कहता बहुत हूँ उसे कोई फर्क नहीं होता।
कितनी रंगीन है दुनिया रंग कोई याद नहीं,
तसव्वुर है जिसका वो मेरे साथ नहीं।
कहां से आया जाने किस मोड़ पे मिल गया,
कितनी ऊंची थी मंजिल डरते-डरते चढ़ गया
करम मालिक का जो गिरते-गिरते बच गया,
कैसी निकली चीख मेरी मैं नींद से जग गया।
सराहनीय
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