मैं घड़ी की सबसे बड़ी सूई,मेरी कोई भी हसरत पूरी न हुई।
कितनी बार इंसान घड़ी देखता है, क्या कभी कोई मुझे टोकता है।
कितनी मेहनत करती हो, दिनभर चलती रहती हो।
कभी आराम नहीं करती, क्यों विश्राम नहीं करती।
कैसी दुबली हो गयी हो, सूख के कांटा बन गयी हो।
कितने सवाल करते हो? क्या वक्त से नही डरते हो?
अब मैं तुम्हें अपना क्या बताऊँ, कहानी कहूँ या व्यथा सुनाऊं।
घड़ी की जो आवाज है, मेरा ही बनाया साज है।
कहने को मैं कांटा सूई हूँ, किसी के पैर चुभती नहीं हूँ।
एक लय अपनी तरंग में चलती हूँ, टिक-टिक कर बढ़ती रहती हूँ।
ये आवाज़ ही मेरी धड़कन है, पर उन दोनों की उलझन हूँ।
कहने को तो मैं सबसे बड़ी हूँ, पर बीच चौराहे खड़ी हूँ।
उन दोनों के जो नाते हैं, न जाने कितने कांटे हैं।
आपस में मिलना नहीं चाहते, जुलना नहीं चाहते।
मैं कितने चक्कर लगाती हूँ, घंटे, मिनट के पास जाती हूँ ।
मिन्नतें करती हूँ,समझाती हूँ।
एक हो जाओ, वास्ता खुदा, करीब आ जाओ।
लोग देखते हैं, मुझे ही कोसते हैं।
दो के बीच तीसरी कहां आ गयी, भरी-पुरी जिंदगी में आग लगा गयी।
पर मैं हार नहीं मानती, रुकना थकना नहीं जानती।
फिर समझाती हूँ, चलती जाती हूँ।
कभी-कभी दोनो मान जाते हैं, बारह बजे दोनों साथ आ जाते हैं।
जैसे ही मैं आगे जाती हूँ, अपना अगला फर्ज निभाती हूँ।
वे फिर लड़ जाते हैं, अलग हो जाते हैं।
जमाना भी मुझ पर कम सितम नहीं करता,
मेरे होने न होने से किसी को फर्क नहीं पड़ता।
कितना बजा है? बारह बजकर दस मिनट,
इतने में ही समझो पूरा गया निबट।
किसी को ध्यान न आया, किसीको, किसी ने न बताया।
सेकेंड भी बजते हैं,सुनने को तरसते हैं।
मैं भी मिनट, घंटे का हिस्सा हूँ, तेरी लंबी जिंदगी का चंद किस्सा हूँ।
मैं ही लगातार चलता जा रहा हूँ, सेकंड से मिनट, मिनट से घंटा बना रहा हूँ।
मेरी टिक-टिक जिस दिन रुक जाएगी, पूरी कायनात धड़ाम हो जाएगी।
वर्तमान वहीं ठहर जाएगा, पूरा का पूरा भूत मे समा जाएगा।
भविष्य जो वर्तमान से जुड़ा है,उसे भी भूत ने ही गढ़ा है।
सब वहीं का वहीं रुक जाएगा, हवा पानी जो है सब बरफ़ बन जाएगा।
सूरज निकलने को तरसेगा, हर ओर से बस अंधकार ही बरसेगा।
कलियाँ फूल बन न सकेंगी, बहुएं मां बनने को तरसेंगी।
सारा गुलशन उजड़ जाएगा, सब कुछ बंजर में बदल जाएगा। हे मूर्ख भूल सुधार ले,
जिंदगी संवार ले। मेरी कदर किया कर, सेकंड की सूई से डरा कर।
सेकंड की सूई ही कभी बरसों में बदल जाएगी,
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