गधे ही सच्चा ध्यान करते हैं, जब अपनी पीठ पर बोझ धरते हैं।
करते नहीं अहंकार कभी, बड़ा संभलकर चलते हैं।
जो भी भार मिले नि:संकोच उठाते हैं,
बिन लालसा सबका बोझ उठाते हैं।
कोई गधा सड़क पर पड़ा नहीं मिलता,
कुत्तों जैसा कभी मरा नहीं मिलता।
गधे कभी आवाज़ नहीं उठाते,
अपना दुख दर्द नहीं बताते।
जब कभी फुर्सत में खड़े रहते हैं।
निर्लिप्त,उदासीन ध्यानमग्न रहते हैं।
ध्यान की परिभाषा जो हमने बनाई है,
अपने दिमाग और माथे पे सजाई है।
वास्तव में वो ध्यान नहीं आराम है,
जगकर सो जाना कदाचित हराम है।
ध्यान सच्चे अर्थों में कुछ और है,
ध्यान से रहना, समझना बात काबिले गौर है।
जो भी करिये ध्यान से करिये,
न किसी को डराइये और न डरिये।
किसी की अक्ल को अपनी से न तौलिये,
उसका है तौलिया, अपना तन न पोछिये।
कभी किसी बुध्दिमान की तुलना गधे से नहीं की जाती है,
अंधेरे में भी देखती आंखें, उल्लू ही कही जाती हैं।
ये तो जमाने का दस्तूर है,
कोई हुजूर तो कोई जी हुजूर है।
जो हुजूर कह देते हैं ब्रम्ह वाक्य बन जाता है,
गरीब, मजलूम,समझदार गधा बन जाता है।
क्योंकि वो लड़ता नहीं, कुछ कहता नहीं।
सबका भार उठाता है, जहाँ कहो पहुचाता है।
मोलतोल नहीं करता, उठाने से नहीं डरता।
कैसा हो जो गधा सरपट दौड़ जाय,
मालिक पीछे और सामान गिर जाय।
लेकिन वो गधा है, ऐसा नहीं करता है,
गम्भीर काम के प्रति,मालिक से डरता है।
हो सकता है मेरा दर्शन किसी को पसंद न आए,
मेरे आगे भी गधे का कोई तमगा लग जाय।
पर क्या करूं, जैसी मैने जी है,
जैसी देखी मन की आंखों, समझी है।
वही सबको बता सकता हूँ,
टूटी,फूटी में समझा सकता हूँ।
निष्कर्ष मैं ये निकालता हूँ,
अपने आप से कहता हूँ।
कभी तो समझदार बन जाओ,
गधे का दर्शन समझो,
थोड़े से गधे बन जाओ।
करते नहीं अहंकार कभी, बड़ा संभलकर चलते हैं।
जो भी भार मिले नि:संकोच उठाते हैं,
बिन लालसा सबका बोझ उठाते हैं।
कोई गधा सड़क पर पड़ा नहीं मिलता,
कुत्तों जैसा कभी मरा नहीं मिलता।
गधे कभी आवाज़ नहीं उठाते,
अपना दुख दर्द नहीं बताते।
जब कभी फुर्सत में खड़े रहते हैं।
निर्लिप्त,उदासीन ध्यानमग्न रहते हैं।
ध्यान की परिभाषा जो हमने बनाई है,
अपने दिमाग और माथे पे सजाई है।
वास्तव में वो ध्यान नहीं आराम है,
जगकर सो जाना कदाचित हराम है।
ध्यान सच्चे अर्थों में कुछ और है,
ध्यान से रहना, समझना बात काबिले गौर है।
जो भी करिये ध्यान से करिये,
न किसी को डराइये और न डरिये।
किसी की अक्ल को अपनी से न तौलिये,
उसका है तौलिया, अपना तन न पोछिये।
कभी किसी बुध्दिमान की तुलना गधे से नहीं की जाती है,
अंधेरे में भी देखती आंखें, उल्लू ही कही जाती हैं।
ये तो जमाने का दस्तूर है,
कोई हुजूर तो कोई जी हुजूर है।
जो हुजूर कह देते हैं ब्रम्ह वाक्य बन जाता है,
गरीब, मजलूम,समझदार गधा बन जाता है।
क्योंकि वो लड़ता नहीं, कुछ कहता नहीं।
सबका भार उठाता है, जहाँ कहो पहुचाता है।
मोलतोल नहीं करता, उठाने से नहीं डरता।
कैसा हो जो गधा सरपट दौड़ जाय,
मालिक पीछे और सामान गिर जाय।
लेकिन वो गधा है, ऐसा नहीं करता है,
गम्भीर काम के प्रति,मालिक से डरता है।
हो सकता है मेरा दर्शन किसी को पसंद न आए,
मेरे आगे भी गधे का कोई तमगा लग जाय।
पर क्या करूं, जैसी मैने जी है,
जैसी देखी मन की आंखों, समझी है।
वही सबको बता सकता हूँ,
टूटी,फूटी में समझा सकता हूँ।
निष्कर्ष मैं ये निकालता हूँ,
अपने आप से कहता हूँ।
कभी तो समझदार बन जाओ,
गधे का दर्शन समझो,
थोड़े से गधे बन जाओ।
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