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Fool's philosophy मेरी आधूरी कहानी

जमाना निगोड़ा कहां से कहां निकल गया,

 मैं मरा अपने हस्ताक्षर में ही अटक गया। 

जब से होश संभाला कैसा रोग लग गया,

नये-नये हस्ताक्षर बनाने का जोश चढ़ गया। 

पता नहीं ऐसा क्या हो जाता है, 

थोड़ा सा बच्चा होश में आता है। 

बस एक सिलसिला शुरू हो जाता है।

नये-नये दस्तख़त बनाता है,

जमाने भर को दिखाता है। 

शायद कोई पसंद कर ले, 

ऐसी नयी बात कह दे, 

जो मन को छू जाय,

 दिल में उतर जाय। 

बस कोई ये कह दे, 

चाहे सपने ही बुन दे।

तुम्हारा साईन तो किसी बड़े आदमी जैसा है, 

क्या आपको दस्तख़त पे कोईभरोसा  है?

मैंने भी आभास कर लिया ,बड़ा प्रयास कर लिया। 

कुछ समझ न आता था, दिल बैठा जाता था। 

पर मैने भी हिम्मत न हारी, ये बात दिल में थी ठानी। 

चाहे जो भी हो मैं भी साइन बनाउंगा, 

सारी दुनिया को साइन दिखलाउंगा। 

जैसे तैसे करके साइन बनाना तो सीख गया,

 पढाई का सारा समय इसमें ही बीत गया।

 अब जाकर जब थोड़ी सी अकल आई, 

दिमाग ने इसकी परिभाषा बताई। 

 हस्ताक्षर अर्थ है हाथों से लिखे अक्षर,

चाहे लिखे हों वो सांप या छछुंदर।  

बस आपके अपने होने चाहिए, 

साफ सुथरे लिखे होने चाहिए।

 फिर क्यों मानव इसकी चाहत करता है,

करते वक्त इसका बड़ा ध्यान रखता है। 

कहता है दस्तख़त आदमी की पहचान होते हैं,

पता है।बंदर थोड़े ही हस्ताक्षर करते हैं।

 हस्ताक्षर का भी अपना वृहद आकार है दर्शन है, 

गरीब के लिए वो ककहरा, समर्थ का सुदर्शन है।

 गरीब-मजदूर जीवन में एकाध बार साइन बनाता है।

 हार जाता है फिर वो अंगूठे पर आ जाता है। 

अगूँठा फिर उसकी तकदीर लिख देता है,

अपनी पहचान अंगूठे को गिरवी रख देता है। 

रसूख वाला अपनी पहचान सिग्नेचर में छिपा लेता है, 

अपने दस्तख़त में दो चार बिंदी भी लगा देता है।  

महिला शायद उसमें अपने को देखती है, 

पुरुष को उसमें अपनी पत्नी दिखती है।

 सदा ही उसे अपने साथ में रखते हैं,

बताते हैं सबसे कहते रहते हैं। 

फिर सिग्नेचर वृहद आकार धर लेता है,

चिपक जाता है गाड़ी पर,पट्टी सा रूप कर लेता है।

गाड़ी क्या,घर क्या दफ्तर क्या,

 हर एक जगह चिपक जाता है, 

आफिस तो है ही गाड़ी मकान जिसे देखिये,

सब का सब मंत्रालय सा बन जाता है। 

कहीं मंत्रालय की तख्ती लगी है, कहीं न्ययालय की,

कोई सचिव लगा रहा है,कहीं सचिवालय की।

जब तक सेवा में रहे, तख्तियाँ ही इकट्ठी करते रहे। 

अब तो सेवा मुक्त हो गये  हैं,पूरे-पूरे पस्त हो गये।

थोड़ा तो आडंबर दूर भगाइये, असल के हो जाइये।

कांपनेे लगे अब आपके भी हाथ, आप भी आज अंगूठा लगाइए।










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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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