सूरज काश उत्तर से दक्षिण को भागता,
अंधेरा उजालों में जीता जागता।
पूरब पश्चिम से मिल जाता,
ऐसा संजोग कभी भूले बन जाता।
पश्चिम के जो कायदे हैं,
पूरब की जो रिवायतें हैं।
दोनों मिलकर एक हो जाते,
धर्मों में तालमेल गठजोड़ बन जाते।
कोई यूं अपने में कभी पूरा नहीं होता,
पर मिलके देखा सपना अधूरा नहीं होता।
सब धर्मों को आपस में मिला लें,
प्यार की चाशनी बराबर से चढ़ा दें।
कर्म ही आदमी की पहचान हो,
किसी से न कोई महफिल में अंजान हो।
अजान हो घंटा बजे चर्च या मंदिर का,
निकले एक ही फलसफा मोहब्बत का।
नाहक़ ही किसी की जिंदगी में क्यों दखल रखना,
कैसे जिए कोई कैसे मरे, किसी को क्या करना।
मेरी मर्जी मैं इंजन को मालिक मानता हूँ,
उसे ही अल्लाह, जीसस, भगवान जानता हूँ।
इंजन हो कोई, सबके बराबर ही काम आता है,
मुझे रोज ही मेरी मंजिल तक पहुचाता है।
मजहब,धर्म की तालीम जो आज हम पा रहे,
अपना के उसे हम कहीं भी नहीं जा रहे।
बैठे हैं सब अपने-अपने कूंओ में,
खटिया खटमल मे बाल जूओं में।
ऐसे चलकर तो कोई बात न बनेगी,
काली,अंधेरी, भद्दी रात न ढलेगी।
अब पश्चिम से पूरब को उगाना पड़ेगा,
इंसानियत से भरा इंसान बनाना होगा।
arwe jay My choice my topics.
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