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गब्बर सिंह की अकड.
फिल्में यूं तो भारत मे बहुत सी आई,
शोले जैसी धूम मगर किसी ने न मचाई।
हर एक शख्स इस फिल्म का दिवाना था,
बच्चे-बच्चे के होठों पे इस फिल्म का गाना था।
एक से एक बढ़कर इसमें किरदार थे,
सबके बोलने के अपने अपने अंदाज थे।
संवाद सबके ही बड़े असर दार,
अभिनेताओं की इसमें भरमार।
एक पात्र तो ऐसा जो एक संवाद बोल सका,
प्रसिद्ध होने से उसे कोई न रोक सका।
जैसे एक किरदार सांभा का नाम ले लीजिए,
कितने संवाद थे उसके नाम जरा ध्यान दीजिए।
कितने ही अनेकों नाम और किरदार हैं,
सबके अपने छोटे बड़े काम हैं।
कहानी संवाद इतने करीने से सजाए गये,
तभी तो लोग एक दिन चार शो देख आए।
सबसे प्रसिद्ध मगर गब्बर सिंह हुआ था।
बच्चे बच्चे को उसका संवाद रटा हुआ था।
मैंने भी शोले देखी अभी भी देखा करता हूं।
एक बात मगर बड़ी अचरज करता हूं।
इतने बड़े काम में भी कुछ गलती कर जाते हैं,
कुछ ऐसी रस्म रिवायत जाने बिन निभाते हैं।
ऐसी ही एक बड़ी निर्देशक ने यहां करी है,
मेरी आंखों की अभी भी वो किरकिरी बनी है।
कैसे कोई किसी समाज की तौहीन कर सकता है,
बिना जाने बूझे इतना बड़ा सीन कर सकता है।
वो सीक्वेंस गब्बर सिंह पर फिल्माई गयी है,
जिस बात पर आज मैंने आपत्ति उठाई है।
इस सीन में गब्बर कुछ कह रहा है,
कभी खुलकर हंसता है कभी गुस्सा कर रहा है।
एकाएक वो अपनी जेब से थैली निकालता है,
खोलता है भक से मुंह में तंबाकू डालता है।
सेकंड भर भी नहीं रखता मुंह मे थूक देता है,
सूर्ती बनाने खाने मे भला ऐसा कहीं होता है।
अरे आप चंबल के डाकू सरदार दिखा रहे हैं,
और उसे इतनी बेवकूफी से सूर्ती खिला रहे हैं।
इतने नासमझ के अंडर कौन काम करेगा,
सूर्ती बनानी नहीं आती सरदार क्या बनेगा।
सूर्ती बनाने खाने के कुछ कायदे होते हैं,
यूपी बिहार सूर्ती मलकर बड़े होते हैं।
जरा इस कला पर गौर कीजिए,
कितनी मुश्किल है इसमें खेल न समझिए।
सूर्ती बड़े इत्मीनान से बनाई जाती है,
चूना तम्बाकू अच्छे से मिलाए जाते हैं।
फिर बायां हाथ रख दायां अंगूठा घिसता है,
घिसने वाले को बस परमानंद मिलता है।
अकेला है कहीं ध्यानमग्न हो जाता हि,
साथ है अगर कोई ज्ञान की बातें बताता है।
जितना रगड़ो उतना ही मजा आता है,
जितना रगड़ो उतना ही नशा छाता है।
उसके बाद उसे अच्छे से झाड़ा जाता है,
तब जाकर कहीं परम अवतार मे आता है।
फिर उसको बराबर से बांट लीजिए,
होंठ उठाकर कहीं कोने मे दाब लीजिये।
फिर डूब जाइए दर्शन की बातें करिए,
कुछ कहिए अपनी कुछ उनकी सुनिए।
यूपी बिहार बिन सूर्ती रह नहीं सकते,
खाए बगैर कोई काम कर नहीं सकते।
यहां स्किल्ड लोगों की बात की जाती है,
तुलना चाइनीज लेबर से की जाती है।
कहा जाता वे माल ज्यादा निकालते हैं,
नहीं जानते वे क्या क्या खाते हैं?
हमारे लोगों को आहार कितना मिलता है,
एक का खाना चार मेंं बंटता है।
जब खाना नहीं काम क्या करेगा,
सूर्ती से ही तो अपना पेट भरेगा।
सूर्ती खाने वालों का भी अपना नेता होता,
मन की बात करता कुछ तो कहता।
छोटी सी बात पर फिल्म सेंसर हो जाती है,
फिर इतनी बड़ी बेइज्जती नहीं समझ आती है।
अब सभी सूर्ती खाने वालों को लड़ना होगा,
मूल अधिकारों मे सूर्ती भी शामिल करना होगा।
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