सियासत की यही पहचान होती है,
लिखावट शालीन जुबां तलवार होती है।
सियासत को कभी हंसी नहीं आती,
मुस्कुराहट वाली कोई बात नहीं भाती।
सदा फंसी रहती है आरोप प्रत्यारोप मे
कोई भी चली कहानी अंत तक नहीं आती।
अरे सियासतदानों तुम भी जरा बदलो,
कभी तो तनाव को हंसी मे बदलो।
कुछ चुटकुलें हों शायरी हो कहानी हो,
कुछ लिखी कहिए कुछ मुंहजबानी हो।
वर्ना जब देखो आपस में लड़ते रहते हैं,
जब भी कुछ कहते हैं आग ही उगलते हैं।
कभी तो आग पर पानी डाल बुझाइए,
किसी विपक्षी को भी कोई मंत्री बनाइये।
दिखने मे तो आप भी इंसान सरीखे लगते हैं,
फिर आप सब जाने क्यों एक ग्रह के दिखते हैं।
कहते हैं मंगली लोग क्रोधी होते हैं,
क्या सभी सियासती मंगली ही होते हैं।
वैसे तो हर सिक्के के दो पहलू होते हैं,
शेर बकरी तो आसानी से दिखते हैं।
पर आप सब तो सदा शेर बने रहते हैं,
बस अपनी ही बातों पे अड़े रहते हैं।
काम वही पिछला आगे बढ़ाते हैं,
फिर हर काम अपना किया क्यों बताते हैं।
विपक्ष मे रहते जिसका विरोध करते हैं,
सत्ता मे आते ही अपना ही निरोध करते हैं।
बातें आप सब की माचिस का काम करती हैं,
एक तीर से सौ सौ शिकार करती है।
क्या आप सब प्रशिक्षित किए जाते हैं,
या सब सुसंस्कारित घरों से नाते हैं।
आप के भी तो भाई-बहन मां बाप होते हैं,
उन सब से भी इसी तरह बात करते हैं।
कितना भी ज्ञानी हो कोई कमी तो होती है,
कड़ियों से मिलकर ही जंजीर पूरी होती है।
जंजीर बन गई हो तो उसे आभूषण सा सजाइये,
जंजीरों से हथकड़ी बेड़ी न बनाइए।
सब मिलकर ही देश की योजना बनाइए,
भारत का पुराना गौरव पुनः वापस ले आइये।
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